हिन्दू धर्म के भगवान है। हनुमान जी अपने भक्तों के कष्ट क्षण में दूर कर देते है इसलिए इन्हें संकटमोचन के नाम से जाना जाता है। यह हनुमान जी का आठ दोहा का मंत्र है। इस मंत्र में हनुमान जी की शक्तियों का बखान किया गया है।
हनुमानाष्टक की शुरूआत हनुमान जी के बचपन की एक घटना से होती है जिसमें वह सूर्य को फल समझ खा जाते हैं। इसके बाद अन्य सभी घटनाओं का वर्णन है जो हनुमान जी से संबंधित थे।
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों I
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो I
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो I को - १
अर्थात
बाल्यकाल में जिसने सूरज को खा लिया था और तीनों लोक में अँधेरा छा गया था,पूरे जग में विपदा का समय था जिसे कोई टाल नहीं पा रहा था,सभी देवताओं ने इनसे प्रार्थना करी कि सूर्य को छोड़ दें,और हम सभी के कष्टों को दूर करें, कौन नहीं जानता ऐसे कपि को जसका नाम ही है संकट मोचन अर्थात संकट को हरने वाला-बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो I
चौंकि महामुनि साप दियो तब ,
चाहिए कौन बिचार बिचारो I
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो I को - २
अर्थात
बालि के डर से सुग्रीव और उसकी सेना पर्वत पर आकर रहने लगी, तब इन्होने भगवन राम को इस तरफ बुलाया और स्वयं ब्राह्मण का वेश रख भगवान की भक्ति की इस प्रकार ये भक्तों के संकट दूर करते हैं-
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ हम सो जु ,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो I
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब ,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो I को - ३
अर्थात
अंगद के साथ जा कर आपने माता सीता का पता किया और उन्हें खोजा एवं इस मुश्किल का हल किया, उनसे कहा गया था- अगर आप बिना माता सीता की खबर लिए समुद्र तट पर आओगे तो कोई नहीं बचेगा उसी तट पर सभी थके हारे बैठे थे जब आप सीता माता की खबर लाये तो सबकी जान में जान आयी-
रावण त्रास दई सिय को सब ,
राक्षसी सों कही सोक निवारो I
ताहि समय हनुमान महाप्रभु ,
जाए महा रजनीचर मरो I
चाहत सीय असोक सों आगि सु ,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो I को - ४
अर्थात
रावण ने सीता माता को बहुत डराया और अपने दुखों को खत्म करने लिए राक्षसों की शरण में आने को कहा,
तब मध्य रात्रि समय हनुमान जी वहां पहुंचे और उन्होंने सभी राक्षसों को मार कर अशोक वाटिका में माता सीता को खोज निकाला और उन्हें भगवान् राम की अंगूठी दे कर माता सीता के कष्टों का निवारण किया-
बान लाग्यो उर लछिमन के तब ,
प्राण तजे सूत रावन मारो I
लै गृह बैद्य सुषेन समेत ,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो I
आनि सजीवन हाथ दिए तब ,
लछिमन के तुम प्रान उबारो I को - ५
रावण के पुत्र इंद्रजीत के शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं उनके प्राणों की रक्षा के लिए हनुमान जी वैद्य सुषेन को उनके घर के साथ उठा लाते हैं,और उनके कहे अनुसार बूटियों के पहाड़ को उठाकर ले आते हैं और लक्ष्मण जी को संजीवनी दे कर उनके प्राणों की रक्षा करते हैं-
अर्थात
रावन जुध अजान कियो तब ,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो I
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल ,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु ,
बंधन काटि सुत्रास निवारो I को - ६
अर्थात
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो I
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि ,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो I
जाये सहाए भयो तब ही ,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो I को - ७
अर्थात
एक समय जब अहिरावन एवं महिरावण दोनों भाई भगवान् राम को लेकर पाताल चले जाते हैं, तब हनुमान अपने मंत्र और साहस से पाताल जा कर अहिरावन और उसकी सेना का वध कर भगवान् राम को वापस लाते हैं-
काज किये बड़ देवन के तुम ,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो I
कौन सो संकट मोर गरीब को ,
जो तुमसे नहिं जात है टारो I
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु ,
जो कछु संकट होए हमारो I को - ८
अर्थात
भगवान् के सभी कार्य किये तुमने और संकट का निवारण किया मुझ गरीब के संकट का भी नाश करो प्रभु, तुम्हें सब पता है और तुम ही इनका निवारण कर सकते हो मेरे जो भी संकट हैं प्रभु उनका निवारण करो-
दोहा
लाल देह लाली लसे,अरु धरि लाल लंगूर I
वज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर II
अर्थात
लाल रंग का सिन्दूर लगाते हैं देह हैं जिनकी भी लाल है और लम्बी सी पूँछ है, वज्र के समान बलवान शरीर है जो राक्षसों का संहार करते हैं ऐसे श्री कपि को बार बार प्रणाम-
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