भगवान श्री कृष्ण का नाम मुंह में आते ही हमारे आँखो के सामने उनके सुन्दर बाल छवि या उनके युवा छवि का चेहरा समाने आ जाता है. श्री कृष्ण के हर छवि में उनके मष्तक पर मोर पंख शोभायमान होता है. भगवान श्री कृष्ण को मोर पंख इतना पसंद था की वह उनके श्रृंगार का हिस्सा बन गया था.
भगवान श्री कृष्ण के मुकुट में मोर पंख धारण करने के संबंध में विद्वानों ने अनेक तर्क दिए है.
1. सारे संसार में मोर ही एकमात्र ऐसा प्राणी माना जाता है जो अपने सम्पूर्ण जीवन में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है. मोरनी का गर्भ धारण मोर के आँसुओ को पीकर होता है. अतः इतने पवित्र पक्षी के पंख को स्वयं भगवान श्री कृष्ण अपने मष्तक पर धारण करते है.
2 .कहा जाता है की राधा के महल में बहुत मोर हुआ करते थे व जब भगवान श्री कृष्ण के बासुरी के धुन में राधा नृत्य करती थी तो उनके साथ वे मोर भी नाचा करते थे. एक दिन किसी मोर का पंख नृत्य करते समय जमीन पर गिर गया जिसे भगवान श्री कृष्ण ने तुरंत उठाकर अपने मष्तक पर सजा लिया. भगवान कृष्ण के सर पर स्थित मोर पंख राधा के प्रेम की निशानी भी मना जाता है.
3. विद्वानों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण को मोर पंख प्रिय होने का एक यह कारण भी हो सकता है की वे अपने मित्र और शत्रु में कोई भेद नहीं करते थे, वे दोनों के साथ समान भावना रखते थे. इसका उद्धाहरण यह है की भागवान श्री कृष्ण के भाई थे बलराम जो शेषनाग के आवतार माने जाते है व नाग और मोर में बहुत भयंकर शत्रुता होती है. अतः श्री कृष्ण मोर का पंख अपने मुकुट में लगाकर यह संदेश देते है की वे सभी के प्रति समान भावना रखते है.
4 . मोरपंख में सभी तरह के रंग पाए जाते है , गहरे और हलके. भगवान श्री कृष्ण मोर पंख के इन रंगो के माध्यम से यही संदेश देना चाहते है की हमारा जीवन भी इसी तरह के सभी रंगो से भरा पडा है कभी चमकीला तो कभी हल्का, इसी तरह जीवन में भी इन रंगो के भाति कभी सुख आते है और कभी दुःख.
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