पांडवो और कौरवो के बीच करुक्षेत्र के मैदान में हुए महाभारत के भयंकर युद्ध में अनेको योद्धा मारे गए थे. महाभारत के युद्ध में कौरवो के पक्ष से पहले सेनापति भीष्म पितामह थे जिन पर अर्जुन ने शिखंडी की सहायता लेते हुए उन्हें कई बाणो से भेद दिया तथा अर्जुन द्वारा भीष्म पितामह के शरीर पर छोड़े गए बाण 58 दिनों तक उनके शरीर छोड़ने से पहले उनके लिए शैय्या बने रहे.
उन बाणो के नुक्ले मुख को अपने शरीर में सहते हुए उत्तरायणी के दिन उन्होंने अपने प्राण त्याग स्वर्गलोक को प्रस्थान किया. पर आखिर उन्होंने 58 दिनों तक उन बाणो को अपने शरीर में क्यों सहा और क्या संबंध था इसका उनके पूर्व जन्म से आइये जाने इसके पीछे की कथा.
महाभारत युद्ध समाप्त हो चूका था तथा पांडव भगवान श्री कृष्ण के साथ युद्ध में मारे गए सभी मृतकों को तिलांज्जलि देने युद्ध की भूमि में आये थे. युद्ध भूमि में ही भीष्म पितामह एक स्थान पर बाणो की शैय्या पर लेटे हुए थे. मृतकों को तिलांज्जलि देकर पांडव और श्री कृष्ण भीष्म पितामाह के पास आशीर्वाद लेने आये तथा महाराज युधिस्ठर ने उनसे कुछ राजपाठ से संबंधित उपदेश लिए.
जब वे वापस अपने महल लौटने के लिए बढ़े तो भीष्म पितामाह ने श्री कृष्ण को रुकने को कहा. भीष्म पितामह श्री कृष्ण को देखते हुए बोले की हे, मधुसूदन मुझे यह बताये की आखिर मेरे किस जन्म के पाप के कारण मुझे इस तरह इन नुकीली बाणो की शैय्या पर लेटना पड रहा है. श्री कृष्ण ने कहा ”पितामाह क्या आप अपने समस्त पूर्व जन्मो के बार में जानते है” ?, इस पर पितामाह बोले की मुझे अपने सौ पूर्व जन्मो के विषय में विदित है मेने इन जन्मो में कभी भी किसी का अहित नही किया.
भगवान श्री कृष्ण मुस्कराते हुए बोले की आप को वास्तव में अपने सौ पूर्व जन्मो के बारे में ज्ञात है तथा आपने अपने इन जन्मो में कभी भी किसी का कुछ बुरा नही किया. परन्तु आपके एक सौ एक वे पूर्व जन्म में आप इस जन्म के भाती ही युवराज थे तथा एक दिन जब आप वन भ्रमण को अपने घोड़े में जा रहे थे तो एक पेड़ में से एक करकैटा आपके घोड़े के सर की तरफ गिरा जिस आपने अपने बाण की सहायता से हटा दिया.
उस समय वह पीठ के ओर से एक कांटे की झाड़ में जा गिरा और उस झाड़ के काटे उसके पीठ में जा चुभे.करकैटा जितना अपने आपको बचाने की कोसिस करता वह काँटों में उतना ही धस्ता चला जाता. इस तरह जितने दिन तक वह उस तड़पती हालत में जिन्दा रहा भगवान से वह यही प्राथना करता रहा की उसकी ऐसी हालत करने वाले को भी उसी पीड़ा से गुजरना पड़े.
तुम अपने पुण्यो के कारण करकैटा के श्राप से बहुत लम्बे समय तक बचे रहे परन्तु जब तुम्हारी नजरो के समाने भरी सभा में द्रोपती का चिर हरण जैसा दुष्टकृत्य किया गया और तुम चुपचाप एक मूक दर्शक की भाती सब कुछ अपने आखो से देखते रहे तब तुम पर करकैटा का श्राप लागू हो गया. इस प्रकार आपको अपने उस जन्म में किये गए पाप के कारण यह दशा भुगतनी पड रही है. भगवान हर व्यक्ति के साथ न्याय करता है, और प्रकृति में विध्यमान हर प्राणी को अपने किये हुए कर्म के अनुसार फल भुगतना पड़ता है !
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