हमारे वेद ग्रंथों में भोजन को तीन श्रेणियों में बांटा गया है - सात्विक, राजसी और तामसिक. दूध, घी, आटा, चावल, फल एवं सब्जियों को सात्विक आहार मन गया है. जबकि तीखे, खट्टे, चटपटे और मिठाइयों को राजसी आहार मन गया गया है. तथा लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा और मदिरा को तामसिक भोजन मन गया है.
क्या प्रभाव होता है भोजन का
सात्विक भोजन से व्यक्ति में शांत, पवित्रता, बुद्धि आदि गुण उत्पन्न होते हैं, जबकि राजसी भोजन से व्यक्ति में उत्साह, जूनून, ख़ुशी जैसे गुण उत्पन्न होते है. तामसिक खाने से व्यक्ति के अन्दर क्रोध, अहंकार, वासना जैसे अवगुण उत्पन्न होते हैं. इसलिए इनको खाने से मन किया गया है.
लहसुन-प्याज से सम्बंधित पौराणिक कथा
समुद्रमंथन के समय जब भागवान विष्णु अमृत बाँट रहे थे, तो रहू - केतु भी भेष बदलकर अमृत लेने पहुँच गए और उनको भी अमृत मिल गया. लेकिन जब विष्णु को उनका ये छल पता चला तोअपने चक्र से उनके दो टुकड़े कर दिए. जहाँ-जहाँ अनके हाथ की वो अमृत की बूँद गिरी थी वहीँ पर लहसुन और प्याज उगे थे. अमृत से उगने के कारण ही ये बहुत अच्छी दवाईयों की तरह काम करते हैं, लेकिन राक्षसों के हाथ से गिरने के कारण तामसिक प्रवृति के हो गए.
आयुर्वेदिक और सामाजिक कारण
आयुर्वेद के अनुसार लहसुन-प्याज बहुत ही अच्छी और तीव्र औसधि हैं इसलिए इनका उपयोग जरूरत पढने पर ही करना चाहिए, प्रतिदिन नहीं करना चाहिए क्यूंकि आप किसी भी दवाई का प्रतिदिन उपयोग नहीं करते हो ना. लहसुन और प्याज गर्म नसीर के होते हैं और इसके सेवन से शरीर में गर्मी बढती है, तथा काम-वासना जाग्रत होती है इसीलिए इनको तामसिक प्रवृति में रखा गया है.
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