google-site-verification=NjzZlC7Fcg_KTCBLvYTlWhHm_miKusof8uIwdUbvX_U पौराणिक कथा: निर्जला एकादशी व्रत कथा | व्रत विधि | महत्व

Tuesday, October 16, 2018

निर्जला एकादशी व्रत कथा | व्रत विधि | महत्व

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हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कहते हैं। इस व्रत में भोजन करना और पानी पीना वर्जित है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस एकादशी पर व्रत करने से वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य मिलता है।

व्रत विधि


निर्जला एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले शेषशायी भगवान विष्णु की पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद मन को शांत रखते हुए ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। शाम को पुन: भगवान विष्णु की पूजा करें व रात में भजन कीर्तन करते हुए धरती पर विश्राम करें। दूसरे दिन (6 जून, मंगलवार) किसी योग्य ब्राह्मण को आमंत्रित कर उसे भोजन कराएं तथा जल से भरे कलश के ऊपर सफेद वस्त्र ढक कर और उस पर शर्करा (शक्कर) तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें।
इसके अलावा यथाशक्ति अन्न, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखा तथा फल आदि का दान करना चाहिए। इसके बाद स्वयं भोजन करें। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाता है-
एवं य: कुरुते पूर्णा द्वादशीं पापनासिनीम् ।
सर्वपापविनिर्मुक्त: पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥
इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
एक बार जब महर्षि वेदव्यास पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प करा रहे थे। तब महाबली भीम ने उनसे कहा- पितामह। आपने प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या, एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाऊंगा?
तब महर्षि वेदव्यास ने भीम से कहा- कुंतीनंदन भीम ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। नि:संदेह तुम इस लोक में सुख, यश और मोक्ष प्राप्त करोगे। यह सुनकर भीमसेन भी निर्जला एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए और समय आने पर यह व्रत पूर्ण भी किया। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
जानिए निर्जला एकादशी का महत्व
1. निर्जला एकादशी के व्रत से साल की सभी 24 एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है।
2. एकादशी व्रत से मिलने वाला पुण्य सभी तीर्थों और दानों से ज्यादा है। मात्र एक दिन बिना पानी के रहने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है।
3. व्रती (व्रत करने वाला) मृत्यु के बाद यमलोक न जाकर भगवान के पुष्पक विमान से स्वर्ग को जाता है।
4. व्रती को स्वर्ण दान का फल मिलता है। हवन, यज्ञ करने पर अनगिनत फल पाता है। व्रती विष्णुधाम यानी वैकुण्ठ पाता है।
5. व्रती चारों पुरुषार्थ यानी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को प्राप्त करता है।
6. व्रत भंग दोष- शास्त्रों के मुताबिक अगर निर्जला एकादशी करने वाला व्रती, व्रत रखने पर भी भोजन में अन्न खाए, तो उसे चांडाल दोष लगता है और वह मृत्यु के बाद नरक में जाता है।
नोट:- यह व्रत जून के महीने में आता है

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