google-site-verification=NjzZlC7Fcg_KTCBLvYTlWhHm_miKusof8uIwdUbvX_U पौराणिक कथा: ॐ के उच्चारण का रहस्य ॐ है एक मात्र मंत्र, यही है आत्मा का संगीत

Wednesday, October 17, 2018

ॐ के उच्चारण का रहस्य ॐ है एक मात्र मंत्र, यही है आत्मा का संगीत

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को ओम लिखने की मजबूरी है अन्यथा तो यह ॐ ही है। अब आप ही सोचे इसे कैसे उच्चारित करें? ओम का यह चिन्ह 'ॐ' अद्भुत है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है। ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार, फैलाव और फैलना। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। 



यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है।

आइंसटाइन भी यही कह कर गए हैं कि ब्राह्मांड फैल रहा है। आइंसटाइन से पूर्व भगवान महावीर ने कहा था। महावीर से पूर्व वेदों में इसका उल्लेख मिलता है। महावीर ने वेदों को पढ़कर नहीं कहा, उन्होंने तो ध्यान की अतल गहराइयों में उतर कर देखा तब कहा।

ॐ को ओम कहा जाता है। उसमें भी बोलते वक्त 'ओ' पर ज्यादा जोर होता है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। यही है √ मंत्र बाकी सभी × है। इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं। यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है।

तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम।

साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है। जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है वह परमात्मा से सीधा जुड़ने लगता है। परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना।

*त्रिदेव और त्रेलोक्य का प्रतीक : 
ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है। 

*बीमारी दूर भगाएँ : तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं।
सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।

*उच्चारण की विधि : प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं। 
*इसके लाभ : इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं। इसके उच्चारण में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।

*शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ाव : प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में 'टॉक्सिक' पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह आल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।

ॐ ही ब्रह्म है। 
ॐ ही यह प्रत्यक्ष जगत् है।
ॐ ही इस जगत की अनुकृति है। 
ॐ-ॐ कहते हुए ही शस्त्र रूप मन्त्र पढ़े जाते हैं। 
ॐ से ही अध्वर्यु प्रतिगर मन्त्रों का उच्चारण करता है। 
ॐ कहकर ही अग्निहोत्र प्रारम्भ किया जाता है। 
ॐ कहकर ही ब्रह्म को प्राप्त किया जा सकता है। सनातन धर्म ही नहींभारत के अन्य
धर्म-दर्शनों में भी ॐ को महत्व प्राप्त है। 
बौद्ध-दर्शन में ॐ का प्रयोग जप एवं उपासना के लिए प्रचुरता से होता है। 
जैन दर्शन में भी ॐ के महत्व को दर्शाया गया है। 
श्रीमद्मागवत् गीता में ॐ के महत्व को कई बार रेखांकित किया गया है, आठवें अध्याय में उल्लेख मिलता है कि जो ॐ अक्षर रूपी ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ शरीर त्याग करता हैवह परम गति प्राप्त करता है। तो फिर इस ॐ की उत्पत्ति कैसे और कब हुई? हमारे जीवन मे ॐ का महत्व क्या है? 
ॐ का शुद्ध उच्चारण क्या है?

आइए जानते हैं ॐ की महिमा।

ॐ ध्वनि की प्रकृति पर ध्यान दिया जाए तो हमे पता
चलेगा की इसमे तीन अक्षरों का समावेश है अ
, उ, और म। । "अ" का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना,
"उ" का अर्थ है उठनाअर्थात् विकास,
"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् मृत्यु को प्राप्त
करना। "अ" ब्रह्मा का वाचक है
उच्चारण द्वारा
हृदय में उसका त्याग होता है। "उ" विष्णु का वाचक हैं
उसका त्याग कंठ में होता है तथा "म" रुद्र का वाचक है ओर उसका
त्याग तालुमध्य में होता है। इस प्रकार से ब्रह्मग्रंथि
विष्णुग्रंथि
तथा रुद्रग्रंथि का छेदन हो जाता है। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी
सृष्टि का द्योतक है।

1. आसान भाषा में कहें तो निराकार ईश्वर को एक शब्द में व्यक्त किया जाये तो वह शब्द ॐ ही है। 
2. यह हमारे आपके स्वांस की गति नियंत्रित कर सकता है। 
3. विज्ञान ने भी ॐ के उच्चारण और उसके लाभ को प्रमाणित किया है। 
4. यह धीमीसामान्य और पूरी साँस छोड़ने में सहायता करती है। 
5. यह हमारे श्वसन तंत्र को विश्राम देता है और हमारे मन-मस्तिष्क को शांत करता है। 
6. ॐ मंत्र आपको सांसरिकता से अलग कर के आपको स्वयं से जोड़ता है। 
7. ॐ मंत्र का जापहीं वह सीढ़ी है जो आपको समाधि और आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर ले जाएगी।

शांत स्थान पर आरामदायक स्थिति में बैठिए।
आंखें बंद करके शरीर और नसों में ढीला छोड़िए।
कुछ लम्बी सांसें लीजिए।
ॐ मंत्र का जाप करिए और इसके कंपन महसूस कीजिए।
इस प्रकार जप करने से आप स्वयं को परम शांति तक ले
जा सकते हैं।

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