एक बार महर्षि कश्यप यज्ञकार्य के लिए वरुणदेव की गौ ले आये। यज्ञ-कार्य की समाप्ति के बाद वरुणदेव के बहुत याचना करने पर भी उन्होंने वह गौ वापिस नहीं दी। तब उदास मन से वरुणदेव ब्रह्माजी के पास गये और उनको अपना दु:ख सुनाते हुए कहा–हे महाभाग ! वह अभिमानी कश्यप मेरी गाय नहीं लौटा रहा है। अत: मैंने उसे शाप दे दिया कि मनुष्य जन्म लेकर तुम गोपालक हो जाओ और तुम्हारी दोनों पत्नियां भी मानव योनि में उत्पन्न होकर अत्यधिक दु:खी रहें।
मेरी गाय के बछड़े माता से अलग होकर बहुत दु:खी हैं और रो रहे हैं, अतएव पृथ्वीलोक में जन्म लेने पर यह अदिति भी मृतवत्सा (जन्म लेते ही बच्चों का मृत्यु को प्राप्त हो जाना) होगी। इसे कारागार में रहना पड़ेगा और उसे बहुत कष्ट भोगना होगा।
वरुणदेव की बात सुनकर प्रजापति ब्रह्मा ने कश्यप मुनि को बुलाया और पूछा–’आपने लोकपाल वरुण की गाय का हरण क्यों किया; और फिर आपने गाय को लौटाया भी नहीं। आप ऐसा अन्याय क्यों कर रहे हैं? न्याय को जानते हुए भी आपने दूसरे के धन का हरण किया है।
लोभ की ऐसी महिमा है कि वह महान-से-महान लोगों को भी नहीं छोड़ता है। संसार में लोभ से बढ़कर अपवित्र अन्य कोई चीज नहीं है; यह सबसे बलवान शत्रु है। महर्षि कश्यप भी इस नीच लोभवश दुराचार में लिप्त हो गये। अत: मर्यादा की रक्षा के लिए ब्रह्माजी ने अपने प्रिय पौत्र कश्यप मुनि को शाप दे दिया कि तुम अपने अंश से पृथ्वी पर यदुवंश में जन्म लेकर वहां अपनी दोनों पत्नियों के साथ गोपालन का कार्य करोगे।
इस प्रकार अंशावतार लेने तथा पृथ्वी का बोझ उतारने के लिए वरुणदेव तथा ब्रह्माजी ने कश्यप मुनि को शाप दे दिया था। कश्यप मुनि ने अगले जन्म में वसुदेवजी और उनकी दोनों पत्नियों ने देवकी और रोहिणी के रूप में जन्म लिया।
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