महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या अदिति से हुआ जिसके गर्भ से विवस्वान (सूर्य) का जन्म हुआ। सूर्य का विवाह त्वष्टा की पुत्री संज्ञा से हुआ। सूर्य व संज्ञा के संयोग से वैवस्वत मनु व यम दो पुत्र तथा यमुना नाम की कन्या का जन्म हुआ। संज्ञा अपने पति के अमित तेज से संतप्त रहती थी। सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन न कर पाने पर उसने अपनी छाया को अपने ही समान बना कर सूर्य के पास छोड़ दिया और स्वयम पिता के घर आ गई। पिता त्वष्टा को यह व्यवहार उचित नहीं लगा और उन्होंने संज्ञा को पुनः सूर्य के पास जाने का आदेश दिया। संज्ञा ने पिता के आदेश की अवहेलना की और घोड़ी का रूप बना कर कुरु प्रदेश के वनों में जा कर रहने लगी।
इधर सूर्य संज्ञा की छाया को ही संज्ञा समझते रहे। कालान्तर में संज्ञा के गर्भ से भी सावर्णि मनु और शनि दो पुत्रों का जन्म हुआ। छाया शनि से बहुत स्नेह करती थी और संज्ञा पुत्र वैवस्वत मनु व यम से कम। एक बार बालक यम ने खेल-खेल में छाया को अपना चरण दिखाया तो उसे क्रोध आ गया और उसने यम को चरण हीन होने का शाप दे दिया। बालक यम ने डर कर पिता को इस विषय में बताया तो उन्हों ने शाप का परिहार बता दिया और छाया संज्ञा से बालकों के बीच भेदभाव पूर्ण व्यवहार करने का कारण पूछा। सूर्य के भय से छाया संज्ञा ने सम्पूर्ण सत्य प्रकट कर दिया।
संज्ञा के इस व्यवहार से क्रोधित हो कर सूर्य अपनी ससुराल में गए। ससुर त्वष्टा ने समझा बुझा कर अपने दामाद को शांत किया और कहा,' आदित्य ! आपका तेज सहन न कर सकने के कारण ही संज्ञा ने यह अपराध किया है और घोड़ी के रूप में वन में भ्रमण कर रही है। आप उसके इस अपराध को क्षमा करें और मुझे अनुमति दें कि मैं आपके तेज को काट-छांट कर सहनीय व मनोहर बना दूं। अनुमति मिलने पर त्वष्टा ने सूर्य के तेज को काट-छांट दिया और विश्वकर्मा ने उस छीलन से भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का निर्माण किया। मनोहर रूप हो जाने पर सूर्य संज्ञा को ले कर अपने स्थान पर आ गए। बाद में संज्ञा ने नासत्य और दस्र नामक अश्वनी कुमारों को जन्म दिया। यम की घोर तपस्या से प्रसन्न हो कर महादेव ने उन्हें पितरों का आधिपत्य दिया और धर्म अधर्म के निर्णय करने का अधिकारी बनाया। यमुना व ताप्ती नदी के रूप में प्रवाहित हुई। शनि को नवग्रह मंडल में स्थान दिया गया।
जानिए कैसे बने शनि देव नवग्रहों के राजा
शनिदेव ने अनेक वर्षों तक भूखे-प्यासे रहकर शिव आराधना की तथा घोर तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया था, तब शनिदेव की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने शनिदेव से वरदान मांगने को कहा।
शनिदेव ने प्रार्थना की- युगों-युगों से मेरी मां छाया की पराजय होती रही है, उसे मेरे पिता सूर्य द्वारा बहुत अपमानित व प्रताड़ित किया गया है इसलिए मेरी माता की इच्छा है कि मैं (शनिदेव) अपने पिता से भी ज्यादा शक्तिशाली व पूज्य बनूं।
तब भगवान शिवजी ने उन्हें वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वश्रेष्ठ रहेगा। तुम पृथ्वीलोक के न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे।
साधारण मानव तो क्या- देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर और नाग भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे। ग्रंथों के अनुसार शनिदेव कश्यप गोत्रीय हैं तथा सौराष्ट्र उनका जन्मस्थल माना जाता है।
साधारण मानव तो क्या- देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर और नाग भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे। ग्रंथों के अनुसार शनिदेव कश्यप गोत्रीय हैं तथा सौराष्ट्र उनका जन्मस्थल माना जाता है।
क्यों चढ़ाते है शनि देव को तेल, क्या रखे सावधानी?
प्राचीन मान्यता है की शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए हर शनिवार को शनि देव को तेल चढ़ाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करते है उन्हें साढ़ेसाती और ढय्या में भी शनि की कृपा प्राप्त होती है। लेकिन शनि देव को तेल क्यों चढ़ाते इसको लेकर हमारे ग्रंथो में अनेक कथाएँ है। इनमे
से सर्वाधिक प्रचलित कथा का संबंध रामयण काल और हनुमानजी से है।
कथा इस प्रकार है शास्त्रों के अनुसार रामायण काल में एक समय शनि को अपने बल और पराक्रम पर घमंड हो गया था। उस काल में हनुमानजी के बल और पराक्रम की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी। जब शनि को हनुमानजी के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई तो शनि बजरंग बली से युद्ध करने के लिए निकल पड़े। एक शांत स्थान पर हनुमानजी अपने स्वामी श्रीराम की भक्ति में लीन बैठे थे, तभी वहां शनिदेव आ गए और उन्होंने बजरंग बली को युद्ध के ललकारा।
युद्ध की ललकार सुनकर हनुमानजी शनिदेव को समझाने का प्रयास किया, लेकिन शनि नहीं माने और युद्ध के लिए आमंत्रित करने लगे। अंत में हनुमानजी भी युद्ध के लिए तैयार हो गए। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। हनुमानजी ने शनि को बुरी तरह परास्त कर दिया।
युद्ध में हनुमानजी द्वारा किए गए प्रहारों से शनिदेव के पूरे शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही थी। इस पीड़ा को दूर करने के लिए हनुमानजी ने शनि को तेल दिया। इस तेल को लगाते ही शनिदेव की समस्त पीड़ा दूर हो गई। तभी से शनिदेव को तेल अर्पित करने की परंपरा प्रारंभ हुई। शनिदेव पर जो भी व्यक्ति तेल अर्पित करता है, उसके जीवन की समस्त परेशानियां दूर हो जाती हैं और धन अभाव खत्म हो जाता है।
जबकि एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, उसके लिए पवन सुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौपी गई। जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर मैं देवताओ में शक्तिशाली शनि हूँ। सुना हैं, तुम बहुत बलशाली हो। आँखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघन मत डालिए। आप मेरे आदरणीय है। कृपा करके आप यहा से चले जाइए।
जब शनि देव लड़ने पर उतर आए, तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उन्हे कसना प्रारंभ कर दिया जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। हनुमान ने फिर सेतु की परिक्रमा कर शनि के घमंड को तोड़ने के लिए पत्थरो पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि का शरीर लहुलुहान हो गया, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ती गई।
तब शनि देव ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि मुझे बधंन मुक्त कर दीजिए। मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूँ, फिर मुझसे ऐसी गलती नही होगी ! तब हनुमान जी ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनि देव की पीड़ा मिट गई। उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता हैं, जिससे उनकी पीडा शांत हो जाती हैं और वे प्रसन्न हो जाते हैं।
हनुमानजी की कृपा से शनि की पीड़ा शांत हुई थी, इसी वजह से आज भी शनि हनुमानजी के भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखते हैं।
शनि को तेल अर्पित करते समय ध्यान रखें ये बात –
शनि देव की प्रतिमा को तेल चढ़ाने से पहले तेल में अपना चेहरा अवश्य देखें। ऐसा करने पर शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है। धन संबंधी कार्यों में आ रही रुकावटें दूर हो जाती हैं और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
शनि पर तेल चढ़ाने से जुड़ी वैज्ञानिक मान्यता –
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे शरीर के सभी अंगों में अलग-अलग ग्रहों का वास होता है। यानी अलग-अलग अंगों के कारक ग्रह अलग-अलग हैं। शनिदेव त्वचा, दांत, कान, हड्डियां और घुटनों के कारक ग्रह हैं। यदि कुंडली में शनि अशुभ हो तो इन अंगों से संबंधित परेशानियां व्यक्ति को झेलना पड़ती हैं। इन अंगों की विशेष देखभाल के लिए हर शनिवार तेल मालिश की जानी चाहिए।
शनि को तेल अर्पित करने का यही अर्थ है कि हम शनि से संबंधित अंगों पर भी तेल लगाएं, ताकि इन अंगों को पीड़ाओं से बचाया जा सके। मालिश करने के लिए सरसो के तेल का उपयोग करना श्रेष्ठ रहता है।
क्यों है शनिदेव की दृष्टि टेढ़ी
शनिदेव के गुस्से की एक वजह उपरोक्त कथा में सामने आयी कि माता के अपमान के कारण शनिदेव क्रोधित हुए लेकिन वहीं ब्रह्म पुराण इसकी कुछ और ही कहानी बताता है। ब्रह्मपुराण के अनुसार शनिदेव भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। जब शनिदेव जवान हुए तो चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह हुआ। शनिदेव की पत्नी सती, साध्वी और परम तेजस्विनी थी लेकिन शनिदेव भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में इतना लीन रहते कि अपनी पत्नी को उन्होंनें जैसे भुला ही दिया। एक रात ऋतु स्नान कर संतान प्राप्ति की इच्छा लिये वह शनि के पास आयी लेकिन शनि देव हमेशा कि तरह भक्ति में लीन थे। वे प्रतीक्षा कर-कर के थक गई और उनका ऋतुकाल निष्फल हो गया। आवेश में आकर उन्होंने शनि देव को शाप दे दिया कि जिस पर भी उनकी नजर पड़ेगी वह नष्ट हो जायेगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने पत्नी को मनाने की कोशिश की उन्हें भी अपनी गलती का अहसास हुआ लेकिन तीर कमान से छूट चुका था जो वापस नहीं आ सकता था अपने श्राप के प्रतिकार की ताकत उनमें नहीं थी। इसलिये शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे।
शनि देव के मंत्र
माना जाता है कि "ॐ शं शनैश्चराय नमः" मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को शनि की महादशा और साड़ेसाती प्रकोप से राहत मिलती है।
शनि देव के नाम
- कोणस्थ
- पिंगल
- बभ्रु
- रौद्रान्तक
- यम
- सौरि
- शनैश्चर
- मंद
- पिप्पलाश्रय
शनि देव का परिवार
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार शनि देव सूर्य के पुत्र हैं तथा इनकी माता का नाम छाया है। माना जाता है कि जन्म से ही काला रंग होने के कारण इनके पिता ने इन्हें नहीं अपनाया था। इसलिए शनि देव अपने पिता को अपना शत्रु मानते हैं।
शनि देव से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें
- शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है।
- शनि देव का वाहन गिद्ध, कुत्ता, भैंस आदि हैं।
- शनिवार को तेल, काले तिल, काले कपड़े आदि दान करने से शनि देव प्रसन्न रहते हैं।
- मान्यता है कि शनि देव की अपने पिता सूर्यदेव से अच्छे रिश्ते नहीं हैं।
- एक कथानुसार हनुमान जी ने शनि देव को रावण की कैद से मुक्त कराया था। तभी से हनुमान जी की आराधना करने वाले जातकों को शनि देव नहीं सताते।
- शनि देव की गति मंद यानि बेहद धीमी है। इसी कारण एक राशि में वह करीब साढ़ेसात साल तक रहते हैं।
शनिदेव को प्रसन्न करने उपाय
शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित होता है। इस दिन तेल चढ़ाने, पीपल पर जल देने, कुत्ते को भोजन कराने आदि से शनि देव प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा इस दिन काले रंग की वस्तु दान करने से भी शनि देव प्रसन्न होते हैं।
शनि देव के मुख्य मंदिर
- शनि शिंगणापुर
- शनिश्चरा मंदिर( ग्वालियर)
- शनि मंदिर (इंदौर)
- प्राचीन शनि मंदिर (मुरैना)
शनि जयंती
शनि जयंती का पावन पर्व हिन्दू धर्म का विशेष पर्व माना जाता है। इस दिन को शनि देव के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। शनि जयंती का पर्व उन लोगों के लिए बहुत महत्त्व रखता है जो लोग शनि के प्रकोप से पीड़ित होते हैं। मान्यता है कि इस दिन पूरे श्रद्धाभाव से शनि देव की पूजा करके दान करने से शनि देव प्रसन्न हो जाते हैं।
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