एक बार ऋषि कश्यप ने अपने आश्रम में एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया तथा उन्ही के समान विद्वान पंडितो को इस यज्ञ को सम्पन्न करने के लिए बुलाया. परन्तु यज्ञ को आरम्भ करने के लिए ऋषि को यज्ञ में प्रयोग होने वाली सामग्री जैसे दूध, घी की व्यवस्था करनी थी जिसके लिए उन्होंने वरुण देव का आह्वान किया. वरुण देव के प्रकट होते ही ऋषि कश्यप उनसे बोले की में एक विशाल यज्ञ आयोजित करा रहा हु अतः मुझे वरदान दीजिये की मेरे द्वारा आयोजित की जाने वाले इस यज्ञ में प्रयोग होने वाली सामग्रीका कभी आभाव न हो तथा यह यज्ञ भलीभाति सम्पन्न हो जाये. वरुण देव ने उन्हें वरदान देते हुए एक दिव्य गाय भेट करी और कहा यज्ञ समाप्ति के बाद में इस गाय को वापस आपसे ले लूंगा.
कश्यप ऋषि का यज्ञ अनेक दिनों तक चला तथा वरुण देव द्वारा दी गयी गाय के प्रभाव से उनके यज्ञ में कभी भी बाधा नही आयी व यज्ञ में प्रयोग होने वाली वस्तुओ का प्रबंध स्वतः ही होता रहा. जब यज्ञ का कार्य सम्पन्न हुआ तो ऋषि कश्यप के मन में उस अद्भुत गाय को लेकर लालच उतपन्न हुआ तथा वे अब इस दिव्य गाय को वरुण देव को वापस लोटना नही चाहते थे. यज्ञ पूरा होने के कई दिनों तक जब ऋषि कश्यप उस गाय को वापस लौटाने वरुण देव के पास नही गए तो एक दिन वरुण देव उनके सामने प्रकट हुए तथा बोले ‘ हे मुनिवर, मेने आपको यह दिव्य गाय यज्ञ को सम्पन्न करने के लिए दी थी अब आपका उद्देश्य पूर्ण हो चूका है तथा यह दिव्य गाय स्वर्ग की सम्पत्ति है अतः इसे अब वापस लोटा दे ‘. तब ऋषि कश्यप हिचकिचाते हुए वरुण देव से बोले की ब्राह्मण को दान में दी गई वस्तु को कभी उससे नही मांगना चाहिए अन्यथा वह व्यक्ति पाप का भागी बनता है. अब यह गाय मेरे संरक्षण में है अतः में इसका देखभाल भलीभाति करूंगा. वरुण देव ने उन्हें अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास किया की वह गाय को इस प्रकार से पृथ्वी पर नही छोड़ सकते परन्तु ऋषि कश्यप ने उनकी एक ना सुनी अंत में वरुण देव हारकर ब्रह्मा जी के पास गए.
ब्रह्मलोक पहुंच वरुण देव ने उन्हें सारी बात बताई, वरुण देव के कहने पर ब्रह्म देव पृथ्वीलोक में ऋषि कश्यप के सामने प्रकट हुए. ब्रह्म देव ने ऋषि कश्यप को समझाते हुए कहा की आप क्यों लोभ में पड़कर अपने समस्त पुण्यो को नष्ट कर रहे हो आप जैसे महान ऋषि को यह शोभा नही देता. ब्रह्माजी के बहुत समझाने पर ऋषि कश्यप पर कोई प्रभाव नही पड़ा और वे अपने फैसले पर अटल रहे. ऋषि कश्यप के इस तरह के व्यवहार से ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए तथा उन्हें श्राप देते हुए बोले की तुम इस गाय के लोभ में पड़कर अपने सोचने की समझने की क्षमता खो चुके हो अतः तुम अपने अंश से पृथ्वी लोक में गोपालक के रूप में जन्म लोगे.
श्राप सुनकर ऋषि कश्यप को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने अपने इस गलती के लिए ब्रह्मा जी तथा वरुण देव से क्षमा मांगी. जब ब्रह्मा जी का क्रोध शांत हुआ तो उन्हें पछतावा हुआ की क्रोध में आकर उन्होंने ऋषि कश्यप को श्राप दे दिया. वे श्राप को परिवर्तित करते हुए ऋषि कश्यप से बोले की तुम अपने अंश से यदुकुल में उतपन्न होगे तथा वहा गायो की सेवा करोगे व स्वयं भगवान विष्णु तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लेंगे. इस प्रकार ऋषि कश्यप ने वासुदेव के रूप में पृथ्वी में जन्म लिया और उन्हें भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण के पिता बनने का सौभाग्य मिला !
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