google-site-verification=NjzZlC7Fcg_KTCBLvYTlWhHm_miKusof8uIwdUbvX_U पौराणिक कथा: इमली के नीचे विराजीं हैं मां हनुमंता, ऐसे पूरी होती है भक्तों की हर मुराद

Saturday, August 10, 2019

इमली के नीचे विराजीं हैं मां हनुमंता, ऐसे पूरी होती है भक्तों की हर मुराद

इमली के नीचे विराजीं हैं मां हनुमंता, ऐसे पूरी होती है भक्तों की हर मुराद
हनुमंता मंदिर की पौराणिक कहानी बड़ी दिलचस्प है।


 गढ़ाकोटा ब्लॉक में सालों से मां हनुमंता देवी का दरबार इमली के पेड़ नीचे सजा है। भक्तों ने मां का मंदिर बना दिया, लेकिन इमली का पेड़ आज भी है। मंदिर की गुम्बद का निर्माण इस तरह किया गया है कि उसमें से इमली की शाखाएं निकली हुई हैं।
मां हनुमंता देवी का दर क्षेत्र के सैकड़ों गांव के लोगों की आस्था का केंद्र हैं। बुजुर्गों के मुताबिक जहां आज माता का मंदिर है, वहां कभी पहले निर्जन वन हुआ करता था।
पहले माता को गांजर खेर की माता, बड़ी माता व खेरमाई के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब यह स्थान मां हनुमंता धाम के नाम से प्रसिद्ध है। हनुमंता धाम सात ग्रामों खारोतला, सेवास, रोन-कुमरई, छुल्ला,ऊंटखेरा व मड़िया के मध्य आता है। आसपास के कई गांवों में माता को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
ऐसी है मंदिर से जुड़ी पौराणिक कहानी
लोगों के मुताबिक इस स्थान का वर्णन महोबा पन्ना रियासत गांजर की लड़ाई आह्ला खंड में मिलता है। वहां के राजा भानुप्रताप व गढ़ाकोटा नरेश श्रीमर्दन सिंह जू देव के पूर्वज संबंधी थे। इसी के चलते राजा भानुप्रतापत ने कुंअरपुर गांव में गढ़ का निर्माण किया। उन्होंने 10 एकड़ जमीन पर तालाब बनवाया था। इस तालाब का पानी खारा होने से इसका नाम खारोताल पड़ा। यहां आज भी पुराने गढ़ के अवशेष खंडर के रूप में मिलते हैं। माता के स्थान से पश्चिम दिशा में एक किमी दूर बेलाखेर का स्थान व तालाब है।
किवदंती है की किसी कारण वश राजा भानुप्रताप को यहां से पलायन करने पड़ा। वे मां हनुमंता को बैलगाड़ी में ले जाने लगे। तब कुछ दूरी पर गाड़ी टूट गई और सभी लोग उनकी मूर्ति को आगे ले जाने में असमर्थ हो गए। लोगों ने सोचा की माता के प्रतिमा को दूसरे दिन ले जाएंगे, लेकिन सुबह जब उठे थे, मां की प्रतिमा उन्हें एक इमली के पेड़ के नीचे मिली। यह प्रतिमा आज भी इसी इमली के वृक्ष के नीचे है।
ऐसे इमली के पेड़ के नीचे सजा मां का दरबार
किवंदती के मुताबिक राजा भानुप्रताप अपनी हठता के चलते मूर्ति ले जाने चाहते थे, लेकिन माता इसी इमली के नीचे दरबार बनाकर रहना चाहती थीं। लोगों के मुताबिक मां हनुमंता देवी के दर में चलो शब्द वर्जित है। बुजुर्गों के मुताबिक गाजरखेड़ा क्षेत्र के तहत आने वाले गांवों में कोई भी व्यक्ति खेत में जुताई, बुबाई व कटाई आदि कृषि कार्य या बातचीत के दौरान चलो शब्द का उपयोग नहीं करता। इसकी जगह अन्य वैकल्पिक शब्द का उपयोग करते हैं।
पं. सुधीर चतुर्वेदी ने कराया मंदिर का निर्माण
माता हनुमंता देवी इमली के नीचे चबूतरे पर विराजित थीं। इसी नव स्थपना छुल्ला गांव के पंडित सुधीर चतुर्वेदी ने करवाई। माता की मूर्ति की स्थापना अक्षय तृतीया पर हुई। यहां प्रत्येक साल चैत्र व शारदेय नवरात्र पर शतचंडी यज्ञ होता है। प्रत्येक बुधवार को माता की विशेष पूजा- अर्चना होती है। यहां सालभर अनेक धार्मिक आयोजन होते हैं।

No comments:

Post a Comment

भगवान श्रीकृष्ण की माखनचोरी लीला

ब्रज घर-घर प्रगटी यह बात। दधि माखन चोरी करि लै हरि, ग्वाल सखा सँग खात।। ब्रज-बनिता यह सुनि मन हरषित, सदन हमारैं आवैं। माखन खात अचानक...