रावण को राक्षस के राजा के रूप में दर्शाया गया है जिसके 10 सिर और 20 भुजाएँ थी l वह मुनि विश्वेश्रवा और कैकसी के चार बचों में सबसे बड़ा पुत्र था l रावण छह दर्शन और चारों वेदों का ज्ञाता था l इसीलिए अपने समय का सबसे विद्वान् था l इस लेख में रावण के दस सिर किस बात का प्रतीक है के बारे में बताया गया हैं l
रावण लंका का रजा था जिसे दशानन यानी दस सिरों वाले के नाम से भी जाना जाता था. रावण रामायण का एक केंद्रीय पात्र है| उसमें अनेक गुण भी थे जैसे अनेकों शास्त्रों का ज्ञान होना, अत्यंत बलशाली, राजनीतिज्ञ, महापराक्रमी इत्यादि|
रावण को राक्षस के राजा के रूप में दर्शाया गया है जिसके 10 सिर और 20 भुजाएँ थी और इसी कारण उनको "दशमुखा" (दस मुख वाला ), दशग्रीव (दस सिर वाला ) नाम दिया गया था। रावण मुनि विश्वेश्रवा और कैकसी के चार बचों में सबसे बड़ा पुत्र था l रावण के दस सिर 6 शास्त्रों और 4 वेदों के प्रतिक हैं, जो उन्हें एक महान विद्वान और अपने समय का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति बनाते हैं। वह 65 प्रकार के ज्ञान और हथियारों की सभी कलाओं का मालिक था l रावण को लेकर अलग-अलग कथाएँ प्रचलित हैं l
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण दस मस्तक, बड़ी दाढ़, ताम्बे जैसे होंठ और बीस भुजाओं के साथ जन्मा था l वह कोयले के समान कला था और उसकी दस ग्रिह्वा कि वजह से उसके पिता ने उसका नाम दशग्रीव रखा था l इसी कारण से रावण दशानन, दश्कंधन आदि नामों से प्रसिद्ध हुआ l
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण दस मस्तक, बड़ी दाढ़, ताम्बे जैसे होंठ और बीस भुजाओं के साथ जन्मा था l वह कोयले के समान कला था और उसकी दस ग्रिह्वा कि वजह से उसके पिता ने उसका नाम दशग्रीव रखा था l इसी कारण से रावण दशानन, दश्कंधन आदि नामों से प्रसिद्ध हुआ l
आइए देखतें हैं रावण के दस सिर किस बात का प्रतीक हैं
क्या आप जानते हैं कि रावण ने ब्रह्मा के लिए कई वर्षों तक गहन तपस्या की थी l अपनी तपस्या के दौरान, रावण ने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए 10 बार अपने सिर को काट दिया। हर बार जब वह अपने सिर को काटता था तो एक नया सिर प्रकट हो जाता था l इस प्रकार वह अपनी तपस्या जारी रखने में सक्षम हो गया।
अंत में, ब्रह्मा, रावण की तपस्या से प्रसन्न हुए और 10 वें सिर कटने के बाद प्रकट हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा l इस पर रावण ने अमरता का वरदान माँगा पर ब्रह्मा ने निश्चित रूप से मना कर दिया, लेकिन उन्हें अमरता का आकाशीय अमृत प्रदान किया, जिसे हम सभी जानते हैं कि उनके नाभि के तहत संग्रहीत किया गया था।
भारतीय पौराणिक कथाओं को समझना काफी मुश्किल हैं, ये कथाएँ एक और कहानी को दर्शाती है और दूसरी तरफ उन कहानियों के पीछे गहरा अर्थ छिपा होता हैं l रावण के दस सिर को दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतीक के रूप में भी माना गया हैं l
भारतीय पौराणिक कथाओं को समझना काफी मुश्किल हैं, ये कथाएँ एक और कहानी को दर्शाती है और दूसरी तरफ उन कहानियों के पीछे गहरा अर्थ छिपा होता हैं l रावण के दस सिर को दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतीक के रूप में भी माना गया हैं l
ये प्रवृत्तियां हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय l कैसे इन प्रवृत्तियों को भड़ावा मिलता हैं l
1. अपने पदनाम, अपने पद या योग्यता को प्यार करना – अहंकार को भड़ावा देना l
2. अपने परिवार और दोस्तों को प्यार करना - अनुराग, लगाव या मोहा l
3. अपने आदर्श स्वभाव को प्यार करना - जो पश्चाताप की ओर जाता है l
4. दूसरों में पूर्णता की अपेक्षा करना - क्रोध या क्रोध की ओर अग्रसर होना l
5. अतीत को प्यार करना - नफरत या घृणा के लिए अग्रणी होना l
6. भविष्य को प्यार करना - डर या भय के लिए अग्रणी l
7. हर शेत्र में नंबर 1 होना चाहते हैं - यह ईर्ष्या को भड़ावा देती है l
8. प्यार करने वाली चीजें - जो लालच या लोभा को जगाती है l
9 विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होना - वासना है l
10. प्रसिद्धि, पैसा, और बच्चों को प्यार - असंवेदनशीलता भी लाता है l
ये सभी नकारात्मक भावनाएं या फिर "प्रेम के विकृत रूप" हैं l देखा जाए तो हर क्रिया, हर भावना प्यार का ही एक रूप है। रावण भी इन नकारात्मक भावनाओं से ग्रस्त था और इसी कारण ज्ञान व श्री संपन्न होने के बावजूद उनका विनाश हो गया।
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