अहिल्या के मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालू पहुंचते हैं. ये मंदिर वहीं है, जहां भगवान राम ने अहिल्या का उद्धार किया था.
कहां है ये मंदिर
दरभंगा के कमतौल स्थित अहिल्या स्थान में रामनवमी के दिन अनोखी परम्परा देखी जाती है. यहां श्रद्धालु अहले सुबह से बैंगन का भार लेकर मंदिर में पहुंचते है. जहां राम और अहिल्या के चरणों में बैंगन के भार को चढ़ाते हैं.
दरभंगा के कमतौल स्थित अहिल्या स्थान में रामनवमी के दिन अनोखी परम्परा देखी जाती है. यहां श्रद्धालु अहले सुबह से बैंगन का भार लेकर मंदिर में पहुंचते है. जहां राम और अहिल्या के चरणों में बैंगन के भार को चढ़ाते हैं.
क्यों प्रसिद्ध है मंदिर
लोगों का मानना है की जिस प्रकार गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर बनी अहिल्या का उद्धार जनकपुर जाने के क्रम में त्रेता युग में राम जी ने अपने चरण से किया था और उनके स्पर्श से पत्थर बनी अहिल्या में जान आ गई थी. उसी तरह जिस व्यक्ति के शरीर में अहिला होता है, वे रामनवमी के दिन गौतम और अहिल्या स्थान कुण्ड में स्नान कर अपने कंधे पर बैंगन का भार लेकर मंदिर आते हैं और बैंगन का भार चढ़ाते हैं तो उन्हें अहिला रोग से मुक्ति मिलती है. अहिला इंसान के शरीर के किसी भी बाहरी हिस्से में हो जाता है, जो देखने में मस्से जैसा लगता है.
लोगों का मानना है की जिस प्रकार गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर बनी अहिल्या का उद्धार जनकपुर जाने के क्रम में त्रेता युग में राम जी ने अपने चरण से किया था और उनके स्पर्श से पत्थर बनी अहिल्या में जान आ गई थी. उसी तरह जिस व्यक्ति के शरीर में अहिला होता है, वे रामनवमी के दिन गौतम और अहिल्या स्थान कुण्ड में स्नान कर अपने कंधे पर बैंगन का भार लेकर मंदिर आते हैं और बैंगन का भार चढ़ाते हैं तो उन्हें अहिला रोग से मुक्ति मिलती है. अहिला इंसान के शरीर के किसी भी बाहरी हिस्से में हो जाता है, जो देखने में मस्से जैसा लगता है.
महिला पंडित कराती हैं पूजा
आज भी जहां भगवान राम ने अहिल्या का उद्धार किया था, उसकी पीढ़ी अवस्थित है और वहां पुरूष पंडित की जगह महिला ही पूजा कराती है. इस स्थल पर भारत के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है.
आज भी जहां भगवान राम ने अहिल्या का उद्धार किया था, उसकी पीढ़ी अवस्थित है और वहां पुरूष पंडित की जगह महिला ही पूजा कराती है. इस स्थल पर भारत के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है.
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