रामकथा को बनाया आदर्श जीवन का मार्ग दिखाने का माध्यम
माना जाता है कि जिसका कोई नहीं होता, उसका ईश्वर होता है। एक दिन स्वामी नरहरिदास उनके गांव आए। उन्होंने ही तुलसी को आगे के जीवन की राह दिखाई। यह भेंट उनके लिए ईश्वरीय वरदान सिद्ध हो गई। कवि तुलसी ने रामकथा को आदर्श जीवन का मार्ग दिखाने का माध्यम बना लिया। उन्होंने रामकथा में न केवल सुखद समाज की कल्पना की, बल्कि आदर्श जीवन जीने का मार्ग भी दिखाया।
तुलसी का रामचरितमानस
तुलसी ने गंगा को करुणा, सत्य, प्रेम और मनुष्यता की धाराओं में वर्गीकृत किया, जिनमें अवगाहन कर कोई भी व्यक्ति अपने आचरण को गंगा की तरह पवित्र कर सकता है।उन्होंने मनुष्य के संस्कार की कथा लिखकर रामकाव्य को संस्कृति का प्राण तत्व बना दिया। कविता का उद्देश्य लोक मंगल मानकर विपरीत परिस्थिति को तप माना। भाव भक्ति के साथ कर्म का संगम होने पर विद्या और ज्ञान स्वयं आने लगते हैं। तुलसी के राम सब में रमते हैं। वे नैतिकता, मानवता कर्म, त्याग द्वारा लोकमंगल की स्थापना करने का प्रयास करते हैं।
तुलसी की रचनाएं
रामचरितमानस के अलावा, कवितावली, दोहावली, हनुमान बाहुक, पार्वती मंगल, रामलला नहछू आदि अनेक कृतियां रचीं। अनेक चौपाइयां सूक्ति बन गई हैं। तुलसी ने सत्य और परोपकार को सबसे बड़ा धर्म और त्याग को जीवन का मंत्र माना। मानव-तन को सही अर्थों में मनुष्य बनाना मानवता की सार्थकता है।
भरत का त्याग, राम की करुणा, जटायू का परहित, शबरी-केवट प्रेम, हनुमान की भक्ति, सुमति जैसे शाश्वत लोकमूल्यों के माध्यम से उन्होंने विषम समस्याओं का समाधान किया। कर्म को सकारात्मक, भाग्य को नकारात्मक मानते हुए असत्य, पाखंड, ढोंग में डूबे समाज को जगाया !
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