आजकल किसी भी संप्रदाय के ग्रंथ को धर्मग्रंथ ही कहा जाता है। धर्मग्रंथ किसी भी संप्रदाय या धर्म का आधार होता है। जिस संप्रदाय के पास अपना कोई एक धर्मग्रंथ नहीं, उसका कोई वजूद नहीं। धर्मग्रंथों में जहां इतिहास और कानून की बातें होती हैं वहीं उनमें धर्म की बातें भी होती हैं।
धर्म की बात से तात्पर्य यह कि उसमें सत्य, अहिंसा, शांति और भाईचारे का पैगाम होता है। उसमें इहलोक और परलोक की भी कई रहस्यमय बातें लिखी होती हैं, जैसे स्वर्ग और नर्क, देवी और देवता, परमेश्वर और शैतान, जन्म और मृत्यु। कुछ धर्मग्रंथ पुनर्जन्म में विश्वास व्यक्त करते हैं तो कुछ नहीं। ऐसा नहीं है कि धर्मग्रंथों का केंद्र ईश्वर ही हो, जैन और बौद्ध धर्मग्रंथों में ईश्वर की चर्चा नहीं की गई है। इसी तरह ऐसी कई मान्यताएं और विश्वास हैं, जो सभी धर्मों में समान है तो कुछ विरोधी भी और विरोधाभाषी भी। कुछ तार्किक तो कुछ अतार्किक भी।
हमने देखा है कि कुछ धर्मग्रंथ किसी एक व्यक्ति विशेष के विचार से भरा है तो कुछ धर्मग्रंथ अनेक व्यक्तियों के विचारों का संकलन है। किसी में ईश्वर, कानून और समाज की बातें ही अधिक हैं, तो कुछ में दार्शनिक प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत किया गया है। कुछ मानव समूह को निर्देश, आदेश और ईश्वरीय संदेश देते हैं तो कुछ रहस्यवाद की बात करते हैं। खैर… बुद्धिमान और दिमागी रूप से स्वतंत्र मनुष्य वही है, जो सभी धर्मग्रंथों का अच्छे से अध्ययन करे और विज्ञानसम्मत बातें करें। आओ हम जानते हैं कि कौन-सा धर्मग्रंथ कब लिखा गया?
हिन्दू धर्मग्रंथ : देशी और विदेशी शोधकर्ताओं और इतिहासकारों के अनुसार संस्कृत में लिखे गए ‘ऋग्वेद’ को दुनिया की प्रथम और सबसे प्राचीन पुस्तक माना जाता है। हिन्दू धर्म इसी ग्रंथ पर आधारित है। इस ग्रंथ को इतिहास की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण रचना माना गया है। प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते हैं कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था।
हिन्दू धर्मग्रंथ ‘वेद’ को जानिए…
लिखित रूप से पाया गया ऋग्वेद इतिहासकारों के अनुसार 1800 से 1500 ईस्वी पूर्व का है। इसका मतलब कि आज से 3 हजार 815 वर्ष पूर्व इसे लिखा गया था। हालांकि शोधकर्ता यह भी कहते हैं कि वेद वैदिककाल की वाचिक परंपरा की अनुपम कृति है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले 6-7 हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है, क्योंकि इसमें उक्त काल के ग्रहों और मौसम की जानकारी से इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। खैर, हम यह मान लें कि 3 हजार 815 वर्ष पूर्व लिखे गए अर्थात महाभारत काल के बहुत बाद में तब लिखे गए, जब ह. अब्राहम थे जिनको इस्लाम में इब्राहीम कहा जाता है। महान खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ यानी 5152 वर्ष पूर्व। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी।
शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म आज से 7129 वर्ष पूर्व अर्थात 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। चैत्र मास की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि वेदों का सार उपनिषद और उपनिषदों का सार गीता है। 18 पुराण, स्मृतियां, महाभारत और रामायण हिन्दू धर्मग्रंथ नहीं हैं। वेद, उपनिषद और गीता ही धर्मग्रंथ हैं।
जैन धर्मग्रंथ : जैन धर्म का मूल भारत की प्राचीन परंपराओं में रहा है। आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है। जैन धर्म की प्राचीनता प्रामाणिक करने वाले अनेक उल्लेख वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। अर्हंतं, जिन, ऋषभदेव, अरिष्टनेमि आदि तीर्थंकरों का उल्लेख ऋग्वेदादि में बहुलता से मिलता है जिससे यह स्वतः सिद्ध होता है कि वेदों की रचना के पहले जैन-धर्म का अस्तित्व भारत में था।
जैन ग्रंथ और पुराण के बारे में विस्तार से जानिए… जैन धर्मग्रंथ और पुराण
महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे। जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे। माना जाता है कि ईसा से 800 वर्ष पूर्व 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए जिनका जन्म काशी में हुआ था।
599 ईस्वी पूर्व अर्थात 2614 वर्ष पूर्व अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने तीर्थंकरों के धर्म और परंपरा को सुव्यवस्थित रूप दिया। कैवल्य का राजपथ निर्मित किया। संघ-व्यवस्था का निर्माण किया- मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका। यही उनका चतुर्विध संघ कहलाया। भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में देह त्याग किया।
यहूदी धर्मग्रंथ : यहूदियों के धर्मग्रंथ ‘तनख’ के अनुसार यहूदी जाति का उद्भव पैगंबर हजरत अबराहम (इस्लाम में इब्राहीम, ईसाइयत में अब्राहम) से शुरू होता है। आज से करीब 4,000 साल पुराना यहूदी धर्म वर्तमान में इसराइल का राजधर्म है।
यहूदी धर्म को जानें
दुनिया के प्राचीन धर्मों में से एक यहूदी धर्म से हीईसाई और इस्लाम धर्म की उत्पत्ति हुई है। यहूदी धर्म की शुरुआत पैगंबर अब्राहम (अबराहम या इब्राहीम) से मानी जाती है, जो ईसा से लगभग 1800 वर्ष पूर्व हुए थे अर्थात आज से 3814 वर्ष पूर्व। ईसा से लगभग 1,400 वर्ष पूर्व अबराहम के बाद यहूदी इतिहास में सबसे बड़ा नाम ‘पैगंबर मूसा’ का है। मूसा ही यहूदी जाति के प्रमुख व्यवस्थाकार हैं। मूसा को ही पहले से ही चली आ रही एक परंपरा को स्थापित करने के कारण यहूदी धर्म का संस्थापक माना जाता है।
यहूदी मान्यता के अनुसार यहोवा (ईश्वर) ने तौरात (तोराह व तनख) जो कि मूसा को प्रदान की, इससे पहले सहूफ़-ए-इब्राहीमी, जो कि इब्राहीम को प्रदान की गईं। यह किताब अब लुप्त हो चुकी है। इसके बाद ज़बूर, जो कि दाऊद को प्रदान की गई। फिर इसके बाद इंजील (बाइबल), जो कि ईसा मसीह को प्रदान की गई।
अब्राहम और मूसा के बाद दाऊद और उसके बेटे सुलेमान को यहूदी धर्म में अधिक आदरणीय माना जाता है। सुलेमान के समय दूसरे देशों के साथ इसराइल के व्यापार में खूब उन्नति हुई। सुलेमान का यहूदी जाति के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 37 वर्ष के योग्य शासन के बाद सन् 937 ईपू में सुलेमान की मृत्यु हुई।
यहूदियों की धर्मभाषा ‘इब्रानी’ (हिब्रू) और यहूदी धर्मग्रंथ का नाम ‘तनख’ है, जो इब्रानी भाषा में लिखा गया है। इसे ‘तालमुद’ या ‘तोरा’ भी कहते हैं। असल में ईसाइयों की बाइबिल में इस धर्मग्रंथ को शामिल करके इसे ‘पुराना अहदनामा’ अर्थात ओल्ड टेस्टामेंट कहते हैं। तनख का रचनाकाल ईपू 444 से लेकर ईपू 100 के बीच का माना जाता है।
पारसियों का धर्मग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ : पारसी धर्म या ‘जरथुस्त्र धर्म’ विश्व के अत्यंत प्राचीन धर्मों में से एक है जिसकी स्थापना आर्यों की ईरानी शाखा के एक प्रोफेट जरथुष्ट्र ने की थी। इसके धर्मावलंबियों को पारसी या जोराबियन कहा जाता है। यह धर्म एकेश्वरवादी धर्म है। ये ईश्वर को ‘आहुरा माज्दा’ कहते हैं। ‘आहुर’ शब्द ‘असुर’ शब्द से बना है। जरथुष्ट्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालिक माना जाता है। वे ईरानी आर्यों के स्पीतमा कुटुम्ब के पौरूषहस्प के पुत्र थे। उनकी माता का नाम दुधधोवा (दोग्दों) था, जो कुंवारी थी। 30 वर्ष की आयु में जरथुस्त्र को ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी मृत्यु 77 वर्ष 11 दिन की आयु में हुई। महान दार्शनिक नीत्से ने एक किताब लिखी थी जिसका नाम ‘दि स्पेक ऑव जरथुस्त्र’ है। कई विद्वान मानते हैं कि जेंद अवेस्ता तो अथर्ववेद का भाष्यांतरण है।
पारसियों का हिन्दुओं से नाता, जानिए
पारसियों का हिन्दुओं से नाता, जानिए
फारस के शहंशाह विश्तास्प के शासनकाल में पैगंबर जरथुस्त्र ने दूर-दूर तक भ्रमण कर अपना संदेश दिया। इतिहासकारों का मत है कि जरथुस्त्र 1700-1500 ईपू के बीच हुए थे। यह लगभग वही काल था, जबकि हजरत इब्राहीम अपने धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे।
पारसियों का धर्मग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ है, जो ऋग्वैदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखा गया है। यही कारण है कि ऋग्वेद और अवेस्ता में बहुत से शब्दों की समानता है। ऋग्वेदिक काल में ईरान को पारस्य देश कहा जाता था। अफगानिस्तान के इलाके से आर्यों की एक शाखा ने ईरान का रुख किया, तो दूसरी ने भारत का। ईरान को प्राचीनकाल में पारस्य देश कहा जाता था। इसके निवासी अत्रि कुल के माने जाते हैं।
बौद्ध धर्मग्रंथ : बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटक के 3 भाग हैं- विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक। उक्त पिटकों के अंतर्गत उपग्रंथों की विशाल श्रृंखलाएं हैं। सुत्तपिटक के 5 भागों में से एक खुद्दक निकाय की 15 रचनाओं में से एक है धम्मपद। धम्मपद ज्यादा प्रचलित है।
बौद्ध धर्म के मूल तत्व हैं- 4 आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएं, अनात्मवाद और निर्वाण। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटक के 3 भाग हैं- विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक। उक्त पिटकों के अंतर्गत उपग्रंथों की विशाल श्रृंखलाएं हैं। सुत्तपिटक के 5 भाग में से एक खुद्दक निकाय की 15 रचनाओं में से एक है धम्मपद। धम्मपद ज्यादा प्रचलित है।
हालांकि धम्मपद पहले से ही विद्यमान था, लेकिन उसकी जो पांडुलिपियां प्राप्त हुई हैं, वे 300 ईसापूर्व की हैं। भगवान बुद्ध के निर्वाण (देहांत) के बाद प्रथम संगीति राजगृह में 483 ईसा पूर्व हुई थी। दूसरी संगीति वैशाली में, तृतीय संगीति 249 ईसा पूर्व पाटलीपुत्र में हुई थी और चतुर्थ संगीति कश्मीर में हुई थी। माना जाता है कि चतुर्थ संगीति में ईसा मसीह भी शामिल हुए थे। माना जाता है कि तृतीय बौद्ध संगीति में त्रिपिटक को अंतिम रूप दिया गया था।
वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 को हुआ। इसी दिन 528 ईसा पूर्व उन्होंने भारत के बोधगया में सत्य को जाना और इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में भारत के कुशीनगर में निर्वाण (मृत्यु) को उपलब्ध हुए।
बाइबल : ईसाई धर्म का धर्मग्रंथ बाइबिल है जिसे ‘बाइबल’ भी कहा जाता है। इसके 2 भाग हैं- पूर्वविधान (ओल्ड टेस्टामेंट) और नवविधान (न्यू टेस्टामेंट)। बाइबिल में यहूदियों के धर्मग्रंथ तनख को ही पूर्वविधान के तौर पर शामिल किया गया। पूर्वविधान को तालमुद और तोरा भी कहते हैं। इसका मतलब ‘पुराना अहदनामा’।
नवविधान (न्यू टेस्टामेंट) ईसा मसीह के बाद की रचना है जिसे ईसा मसीह के शिष्यों ने लिखा था। इसमें ईसा मसीह का जीवन परिचय और उनके उपदेशों का वर्णन है। इसके अलावा शिष्यों के कार्य लिखे गए हैं। माना जाता है कि इसकी मूलभाषा अरामी और ग्रीक थी। नवविधान में ईसा के संदेश और जीवनी का उनके 4 शिष्यों द्वारा वर्णन किया गया है। ये 4 शिष्य हैं- मत्ती, लूका, युहन्ना और मरकुस। हालांकि उनके कुल 12 शिष्य थे। बाइबिल कुल मिलाकर 72 ग्रंथों का संकलन है- पूर्वविधान में 45 तथा नवविधान में 27 ग्रंथ हैं। नए नियम को इंजील कहा जाता है।
बाइबिल के पूर्वविधान का रचनाकाल क्रमश: 1400 ईसापूर्व से 100 ईपू के बीच रचा गया माना गया है। हालांकि तनख का रचनाकाल ईपू 444 से लेकर ईपू 100 के बीच का माना जाता है। माना जाता है कि ह. मूसा ने लगभग 1400 ईपू में पूर्वविधान का कुछ अंश लिखा था। पूर्वविधान की अधिकांश रचनाएं 900 ईपू और 100 ईपू के बीच की हैं।
बाइबिल के नवविधान से ही ईसाई धर्म की शुरुआत मानी जाती है जिसका रचनाकाल सन् 50 ईस्वी से सन् 100 ईस्वी तक अर्थात 50 वर्ष की अवधि में यह ग्रंथ लिखा गया। माना जाता है कि सन् 66 में इसको मुकम्मल तौर पर एक किताब का रूप दिया गया। लगभग सन् 400 ई. में संत जेरोम ने समस्त बाइबिल की लैटिन अनुवाद प्रस्तुत किया था, जो वुलगाता (प्रचलित पाठ) कहलाता है और शताब्दियों तक बाइबिल का सर्वाधिक प्रचलित रूप रहा है।
कुरान (कुरआन) : कुरान इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक है। हजरत मोहम्मद साहब पर जो अल्लाह की पवित्र किताब उतारी गई है, वह है- कुरआन। अल्लाह ने फरिश्तों के सरदार जिब्राइल अलै. के मार्फत पवित्र संदेश (वही) सुनाया। उस संदेश को ही कुरआन में संग्रहीत किया गया है। कुरान में कुल 114 अध्याय हैं जिन्हें सूरा कहते हैं। हर अध्याय में कुछ श्लोक हैं जिन्हें आयत कहते हैं।
इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार कुरान की पहली आयत सन् 610 में उतरी थी और हजरत मुहम्मद की वफात तक सन् 632 तक कुरान की आयतें उतरती रहीं। प्रारंभिक काल में इन आयतों का मौखिक रूप से प्रचार प्रसार किया गया लेकिन बाद में इन आयतों का संकलन हजरत मुहम्मद सा. की वफात के बाद सन् 633 में इसे पहली बार लिखा गया और 653 में इसे पुस्तक का रूप देकर इसकी प्रतियां इस्लामिक साम्राज्य में वितरित की गईं। इसका मतलब यह कुरान आज से 1403 वर्ष पुरानी है।
इस्लामिक मान्यता के अनुसार तृतीय खलीफा हजरत उस्मान (रजि.) ने अपने सत्ता समय में हजरत सिद्दीके अकबर (रजि.) द्वारा संकलित कुरआन की 9 प्रतियां तैयार करके कई देशों में भेजी थीं उनमें से 2 कुरआन की प्रतियां अभी भी पूर्ण सुरक्षित हैं। एक ताशकंद में और दूसरी तुर्की में उपस्थित हैं।
सिख धर्मग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब : श्री गुरुनानक देवजी से लेकर श्री गुरु गोविंद सिंहजी तक गुरुगद्दी शारीरिक रूप में रही, क्योंकि इन सभी गुरुजियों ने भौतिक शरीर को धारण करके मानवता का कल्याण किया। पर 10वें गुरुजी ने शरीर का त्याग करने से पहले सारी सिख कौम को आदेश दिया कि आज से आपके अगले गुरु ‘श्री गुरुग्रंथ साहिब’ हैं। इस पवित्र ग्रंथ में सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक और अन्य गुरुओं के साथ ही हिन्दू और मुस्लिम संतों की वाणियां भी शामिल की गई हैं। इन संतों के नाम हैं- जयदेव, परमानंद, कबीर, रविदास, नामदेव, सघना, धन्ना, शेख फरीद आदि।
गुरुग्रंथ साहिब के प्रथम संग्रहकर्ता 5वें गुरु अर्जुनदेवजी हुए थे, उनके बाद भाई गुरुदास इसके संपादक हुए। 16 अगस्त 1604 ई. को हरिमंदिर साहिब, अमृतसर में गुरुग्रंथ साहिब की स्थापना हुई थी। 1705 ई. में ‘दमदमा साहिब’ में गुरु गोविंद सिंह ने गुरु तेगबहादुर के 116 शब्दों को और जोड़कर इस ग्रंथ को पूर्ण किया। इस ग्रंथ में कुल 1430 पृष्ठ हैं।
ब्रिटिश लाइब्रेरी के पास गुरुग्रंथ साहिब की बहुत पुरानी प्रति मौजूद है। इस प्रति को पहले 100 साल पुराना माना जाता था, लेकिन अब नए अनुसंधानों से पता चला है कि ये 1660 से 1675 के बीच की प्रति है। ब्रिटिश लाइब्रेरी की ये खोज सेंट जॉन्स कॉलेज, कैम्ब्रिज के डॉ. जीवन देवल ने की थी। इस प्रति को ब्रिटिश म्यूजियम के लिए ए. फिशर नामक मिशनरी ने अमृतसर, पंजाब में 1884 में खरीदा था। गुरुग्रंथ साहिब का संकलन 1604 में किया गया था।
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