पौराणिक कथा (Pauranik katha) के अनुसार एक आश्रम में विद्वान ऋषि कक्षीवान रहते थे वे प्रत्येक प्रकार के शास्त्र और वेद में निपुर्ण थे. एक बार वे उन्ही के समान शास्त्रात में निपुर्ण ऋषि प्रियमेध से मिलने गए तथा उनके आश्रम में पहुँचते ऋषि प्रियमेध द्वारा उनका खूब आदर सत्कार किया गया. ऋषि कक्षीवानजब भी ऋषि प्रियमेध से मिलते तो दोनों के बीच बहुत लम्बी शास्त्रात होती इसी तरह उस दिन भी ऋषि कक्षीवान ने प्रियमेध से एक पहेली पूछी की ऐसी कौन सी चीज है जिसे यदि जलाये तो उस से तनिक भी रौशनी न हो ?
इस तरह प्रियमेध की आठ पीढ़िया कक्षीवान के प्रश्न का उत्तर ना पा सकी तथा उत्तर खोजते-खोजते स्वर्ग को प्राप्त हो गई. कक्षीवान अपने पहेली का हल पाने के लिए जिन्दा रहे. कक्षीवान के पास एक नेवले के चमड़े से बनी थेली थी जिसमे कुछ चावल भरे थे प्रत्येक वर्ष वे उसमे से एक – एक दाना निकालकर फेक देते थे. जब तक थेली के सारे चावल खत्म ना हो जाये उन्हें तब तक जीवन प्राप्त था.
प्रियमेध के नोवी पीढ़ी में साकमश्व नाम का बालक पैदा हुआ व बचपन से ही बहुत विद्वान था तथा अपने मित्रो के साथ हर शास्त्राथ में वह विजयी होता था. साकमश्व जब बड़ा हुआ तो उसे एक बात चुभने लगी की एक पहेली का उत्तर उसकी पूरी 8 पीढ़िया देने में असमर्थ रही और स्वर्गवासी हो गई परन्तु अब तक उस प्रश्न को पूछने वाला जिन्दा है. साकमश्व ने निश्चय किया की वह इस प्रश्न का उत्तर ढूढ के ही चेन लेगा. एक दिन उसे प्रश्न का उत्तर सोचते सोचते सामवेद का एक श्लोक सुझा तथा उसने सामवेद के उस श्लोक को एक निर्धारित सुर में गाना शुरू किया, इसके साथ ही उसे प्रश्न का उत्तर मिल गया.
No comments:
Post a Comment