गोदावरी के उद्गम स्थल के समीप
(महाराष्ट्र के नासिक में) ही श्री त्र्यम्बकेश्वर शिव अवस्थित हैं।
गौतमी तट पर स्थित
इस त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग का जो मनुष्य भक्तिभाव पूर्वक दर्शन पूजन करता है, वह समस्त
पापों से मुक्त हो जाता है।
श्री त्र्यम्बकेश्वर शिव ज्योतिर्लिंग
की कथा (Story of Trimbakeshwar Shiva Temple)
पुराणों के अनुसार एक बार महर्षि
गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियां किसी बात पर उनकी पत्नी
अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपकार करने के लिए
प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके लिए भगवान गणेश की आराधना की। उनकी आराधना से
प्रसन्न हो गणेशजी ने उनसे वर मांगने को कहा, उन ब्राह्मणों ने कहा- "प्रभो!
किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।" गणेशजी को विवश होकर
उनकी बात माननी पड़ी। तब श्रीगणेश ने एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के
खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देख ऋषि ने हाथ में तृण लेकर उसे हांकने
लगे। उन तृणों का स्पर्श होते ही गाय वहीं गिरकर मर गई। उस समय सारे ब्राह्मण
एकत्र हो गौ-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे।
तब अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन
ब्राह्मणों से प्रायश्चित और उद्धार का उपाय पूछा। तब उन्होंने कहा- "गौतम!
तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर
लौटकर यहां एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद "ब्रह्मगिरी" की 101 परिक्रमा
करो तभी तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहां गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक
करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान
करके इस ब्रह्मगरी की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव
शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा। उसके बाद महर्षि गौतम वे सारे
कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे।
इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा।
महर्षि गौतम ने
कहा- "भगवान आप मुझे गौ-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।" भगवान शिव ने
कहा- "गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गौ-हत्या का अपराध तुम पर छलपूर्वक
लगाया गया था। ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना
चाहता हूं। इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका
दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।"
बहुत से ऋषियों, मुनियों और देवगणों ने वहां एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते
हुए भगवान शिव से सदा वहां निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहां
त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी
वहां पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं।
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