गुरु तेग बहादुर का जन्म (Details of Guru Tegh Bahadur Ji)
धर्म, मानवता, सिद्धांतों के लिए
शहीद होने वाले गुरु तेग बहादुर जी का स्थान सिख धर्म में विशेष महत्व रखता है।
इन्हें "हिन्द-दी-चादर" के नाम से भी जाना जाता है। कश्मीरी पंडितों के
लिए शहीद होने वाले गुरु तेज बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर नगर में
पिता छठे गुरु श्री हरगोविंद साहिब एवं माता नानकी के घर हुआ था। इनकी मृत्यु 11
नवम्बर 1675 में हुई।
गुरु तेग बहादुर का बचपन (Childhood
of Guru Tegh Bahadur Ji)
बचपन से ही गुरु तेग बहादुर अपना
अधिक समय ध्यान में लीन रहकर बिताते थे। वह अमृतसर में जन्मे थे और गुरु हरगोबिंद
साहिब के सबसे छोटे बेटे थे। गुरु हर किशन साहिब के निधन होने से पहले उन्होंने
अगले गुरु की पहचान बताई थी कि वह बाबा बाकल होंगे और गुरु तेग बहादुर बाकल में ही
रहते थे
गुरु तेग बहादुर के कार्य (Work of
Guru Tegh Bahadur)
पहले पांच नानकों की तरह उन्हें भी
शबद का रहस्योमय अनुभव हुआ था और उन्होंने भी कई गीतों का लेखन किया। गुरु नानक की
तरह ही उन्होंने भी कई जगहों का भ्रमण किया। उनके जीवन का अंत सिख प्रतिबद्धता की
धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता के लिए एक जबरदस्त सीख बनकर उभरा।
कश्मीरी पंडितों की मदद (Help of
Kashmiri Pandit in Hindi)
औरंगज़ेब द्वारा हिन्दू पंडितों को
ज़बरदस्ती मुस्लिम धर्म में परिवर्तित किया जा रहा था तब गुरु तेग बहादुर ने
हिन्दू धर्म के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने मुगल शासक के सामने एक शर्त रखी कि
यदि वह उनका धर्म परिवर्तन करा पाया तो सभी हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करा लेंगे।
इसके बाद औरंगज़ेब ने उन्हें कई
प्रकार से प्रताड़नाएं पहुंचाई लेकिन वह उन्हें हरा नहीं पाया और अंत में उसने
गुरु के सिर को कलम करवा दिया। कहा जाता है कि जेल में प्रस्थान करने से पहले गुरु
जी ने औरंगज़ेब को एक चिट्ठी लिखी थी जो उन्होंने केवल अपने शहीद होने के बाद ही
औरंगज़ेब तक पहुंचाने को कहा था। यह भी कहा जाता है कि जब वह जेल में थे उन्होंने
मुगल साम्राज्य के पतन और पश्चिमी ताकतों के आने की भी भविष्यवाणी कर दी थी।
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