शिरडी वाले श्री सांईबाबा जिनके दर्शनमात्र से ही श्रद्धालु अपने जीवन को धन्य मान लेते थे, वहीं आज भी श्री सांई बाबा के समाधि मंदिर में बाबा की एक झलक पाकर श्रद्धालु अभिभूत हो उठते हैं। श्रद्धालुओं को आज भी बाबा के जीवंत होने की अनुभूति होती हैं श्रद्धालुओं का मानना है कि बाबा आज भी अपने श्रद्धालुओं की करूण पुकार सुनकर दौड़े चले आते हैं। श्री सांई बाबा की पावन धुन श्रद्धालुओं को सभी कष्टों से बचाती है। आज भी ऐसे कई श्रद्धालु मौजूद हैं जो बाबा का स्मरण करने मात्र से अपने को दुखों से दूर पाते हैं। श्री सांईबाबा स्वयं इस सृष्टि के पालनहार थे लेकिन फिर भी अपने भक्तों के बीच सादा जीवन जीया करते थे।
वे एक फकीर की तरह भिक्षामांगते और एकत्रित किए गए धान्य, अन्न को अपनी हांडी में पकाकर सभी को प्रेम से भोजन करवाते थे। उन्होंने मानवता का संदेश दिया था। तभी से रामनवमी पर श्री सांई बाबा मंदिरों में भंडारों का आयोजन होता है। आज भी शिरडी में बाबा की पावन स्मृतियां श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचती है और बाबा के प्रेम को दुगना कर देती हैं। शिरडी के सांई बाबा ऐसे ही अंर्तयामी व्यक्तित्व से परिपूर्ण थे। उनमें अद्भुत योग शक्ति थी। कभी वे अपनी योग शक्ति से पतली सी लकड़ी पर बने कमजोर से आसन पर भी आसानी से बैठ जाया करते थे तो कभी इनके भक्त इन्हे बग्घी में विराजित कर इनकी शोभायात्रा निकालते थे।
एक बार एक भक्त को श्री सांई बाबा से जुड़ा ऐसा ही चमत्कारिक अनुभव हुआ। इस दौरान उक्त भक्त जब बाबा से मिलने पहुंचे तो उन्हें बाबा का शरीर कई टुकड़ों में बांट लिया था। उन्हें लगा कि किसी ने बाबा का खून कर दिया है। इस वजह से वे दौड़कर बाबा के अन्य भक्तों को सूचित करने पहुंचे लेकिन जब वे लौटे तो आश्चर्य में पड़ गए बाबा हमेशा की तरह द्वाकामाई में बैठकर मुस्कुरा रहे थे और भक्त स्वयं द्वारा देखे गए दृश्य पर आश्चर्य व्यक्त कर रहा था।
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