अग्नि पुराण’ समस्त महापुराणों की
सूची में आठवें स्थान पर है, जिसने अपने साहित्य एवं ज्ञान भंडार के
कारण विशेष पद
प्राप्त किया है। अग्नि पुराण को 'भारतीय संस्कृति का विश्वकोश' भी कहा जाता है। अग्नि
पुराण में त्रिदेवों यानि ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं सूर्यदेव की उपासना का विवरण विस्तारपूर्वक
किया गया है।
अग्नि पुराण में समस्त विद्याओं का वर्णन, महाभारत एवं रामायण का अल्प
विवरण है, इसके अलावा
भगवान विष्णु के मत्स्य, कूर्म व अन्य अवतारों की कथा, सृष्टि,
विविध देवी देवताओं के मन्त्र, पूजन विधि, व
अन्य अनेक उपयोगी विषयों को अत्यन्त सहज
रूप में संकलित है।
अग्नि पुराण के भाग (Parts of Agni
Puran)
नारद पुराण के अनुसार अग्नि पुराण
में तीन सौ तैरासी अध्याय तथा लगभग पंद्रह हज़ार श्लोकों का संग्रह है, किन्तु
मतस्यपुराण के अनुसार अग्नि पुराण में सोलह हजार श्लोक हैं। अग्नि पुराण दो भागों
में विभाजित है, जो निम्न हैं:
· प्रथम भाग: अग्नि पुराण के प्रथम
भाग में ब्रह्म विद्या, भगवान विष्णु के दस अवतारों के साथ साथ 11 रुद्रों, 8
वसुओं एवं 12 आदित्यों का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त भगवान विष्णु, शिव व
सूर्य की अर्चना का विधान है। भौगोलिक, राजनैतिक, गणित, ज्योतिष शास्त्र व अन्य
विद्या विस्तारपूर्वक उल्लेख है।
· द्वितीय भाग: द्वितीय भाग
में धन्वंतरि देवी (आयुर्वेद) का विशेष विवरण अनेक अध्यायों में उल्लेख मिलता है।
इसके अतिरिक्त छंद, अलंकार, व्याकरण एवं कोश शस्त्र संबंधी कई विवरण दिये गए
हैं।
अग्नि पुराण का फल (Benefits of Agni
Puran)
मान्यता है कि जो मनुष्य अग्नि पुराण
को लिखकर स्वर्णमयी कमल और तिलमयी धेनु के साथ मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को पौराणिक
ब्राह्मण को दान करता है, वह स्वर्ग लोक में प्रतिष्ठित होता है। अग्नि पुराण की
पढ़ने व सुनने से मनुष्य को इहलोक एवं परलोक में भी मोक्ष प्राप्त होता है।
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