सिद्धि विनायक मंदिर महाराष्ट्र
के सिद्धटेक नामक गाँव में स्थित है। यहां स्थित गणेश भगवान का
मंदिर 'अष्टविनायक'
पीठों में से एक है, जिसे 'सिद्धिविनायक' के नाम से जाना जाता है। इसकी उत्पत्ति
के
संबंध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
सिद्दि विनायक मंदिर का इतिहास
मान्यता है कि यह मंदिर मूलत: 1801 में बना था। उस समय यह मंदिर बेहद छोटा था। 1911 में सरकार की सहायता से इस मंदिर का पुनर्निमाण किया गया। यहां स्थित भगवान गणेश की मूर्ति चतुर्भुजी है। मान्यता है कि यह मूर्ति एक ही पत्थर को काट कर बनाई गई है। .
मान्यता है कि यह मंदिर मूलत: 1801 में बना था। उस समय यह मंदिर बेहद छोटा था। 1911 में सरकार की सहायता से इस मंदिर का पुनर्निमाण किया गया। यहां स्थित भगवान गणेश की मूर्ति चतुर्भुजी है। मान्यता है कि यह मूर्ति एक ही पत्थर को काट कर बनाई गई है। .
सिद्धि विनायक की उत्पत्ति की
कथा
कथा के अनुसार जब विष्णु भगवान सृष्टि की रचना कर रहे थे तो उन्हें नींद आ गई। उस समय भगवान विष्णु जी के कानों के दो राक्षस मधु और कैटभ उत्पन्न हुए। वो दोनों ही देवताओं तथा ऋषि- मुनियों पर अत्याचार करने लगे।
मधु और कैटभ के अत्याचारों से परेशान होकर देवताओं ने श्री विष्णु की आराधना की तथा उनका वध करने को कहा। इसके बाद भगवान विष्णु जी अपनी निद्रा से जागे तथा उन्हें मारने का प्रयास किया, परंतु वह असफल रहें। सफलता के बाद विष्णु जी ने शिवजी से सहायता मांगी, तब शिव जी ने उन्हें बताया कि गणेश के बिना यह कार्य सफल नहीं हो सकता है। इसके बाद भगवान विष्णु ने गणेश जी का आवाहन किया।
कथा के अनुसार जब विष्णु भगवान सृष्टि की रचना कर रहे थे तो उन्हें नींद आ गई। उस समय भगवान विष्णु जी के कानों के दो राक्षस मधु और कैटभ उत्पन्न हुए। वो दोनों ही देवताओं तथा ऋषि- मुनियों पर अत्याचार करने लगे।
मधु और कैटभ के अत्याचारों से परेशान होकर देवताओं ने श्री विष्णु की आराधना की तथा उनका वध करने को कहा। इसके बाद भगवान विष्णु जी अपनी निद्रा से जागे तथा उन्हें मारने का प्रयास किया, परंतु वह असफल रहें। सफलता के बाद विष्णु जी ने शिवजी से सहायता मांगी, तब शिव जी ने उन्हें बताया कि गणेश के बिना यह कार्य सफल नहीं हो सकता है। इसके बाद भगवान विष्णु ने गणेश जी का आवाहन किया।
भगवान विष्णु के प्रार्थना पर गणेश
जी प्रकट हुए तथा दोनों राक्षसों का वध कर दिया। दैत्यों के वध के
बाद विष्णु जी ने
एक पर्वत पर मंदिर बनाया तथा वहां गणेश जी की स्थापना की। इसके बाद उस
स्थान को सिद्धिटेक
तथा मंदिर को “सिद्धि विनायक” के नाम से जाना जाने लगा।
सिद्धि विनायक की विशेषता
मान्यता है कि किसी भी शुभ कार्य के आरंभ में गणेश
जी की पूजा की जाती है, ताकि शुभ कार्य के
बीच में कोई बाधा ना आए। यह मंदिर श्री गणेश
को ही समर्पित है। लोगों का मानना है कि सिद्धि
विनायक के दर्शन से सारे कार्य बिना
किसी बाधा के सफल हो जाता है।
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