अठारह महापुराणों में ‘नारद पुराण' (Narada Puran) या
'नारदीय पुराण' एक वैष्णव पुराण है। मान्यता है कि इसे देवर्षि नारद ने स्वयं अपने
मुख से बोला था। इस पुराण में पच्चीस हजार श्लोक हैं, जो महर्षि वेदव्यास द्वारा
रचित हैं। नारद पुराण विष्णु भक्ति को समर्पित है। इस पुराण में विभिन्न पुण्य और
पापों का वर्णन किया गया है। नारद पुराण में ब्रह्मचर्य व वर्ण के आधार पर कर्मों
का विभाजन किया गया है। साथ ही इसमें समस्त पुराणों की तालिका सूची भी दी गई है।
लेकिन जो चीज नारदपुराण को सबसे अहम
बनाती है वह है इसमें वर्णित विभिन्न गणितीय समीकरण और सटीक वास्तु नियम। इसे
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अहम माना जाता है।
नारद पुराण के भाग (Parts of Narad
Puran)
नारद पुराण सम्पूर्ण रूप से विष्णु
भक्ति, ‘अतिथि देवो भव’ (अतिथि देवता का स्वरूप होता है) व ब्रह्मचर्य को समर्पित
है। नारद पुराण दो भागों में विभाजित है, जो निम्न हैं:
· पूर्व भाग: नारद पुराण
के पूर्व भाग में एक सौ पच्चीस अध्याय हैं, जिनमें ज्ञान के विभिन्न स्तर का
विस्तारपूर्वक वर्णन के साथ धार्मिक गाथाएं, गुप्त धार्मिक अनुष्ठान, धर्म का
सत्व, भक्ति का महत्त्व निरुक्त, ज्योतिष, मन्त्र विज्ञान, बारह माह की व्रत कथाएं
व अन्य का वर्णन विस्तारपूर्वक मिलता है। समस्त महापुराणों की सूची एवं उनके
मन्त्रों की संख्या का उल्लेख इसी भाग में संकलित किया गया है।
· उत्तर भाग: नारद
पुराण के उत्तर भाग में 82 अध्याय हैं। इसमें शिक्षा, गणित, व्याकरण, निरुक्त, छंद
और ज्योतिष का विश्लेषण किया गया है।
नारद पुराण का फल (Benefits of Narad
Puran)
मान्यता है कि नारद पुराण को सुनने
और पढ़ने से पापी व्यक्ति भी पाप मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक
एकाग्रचित्त होकर इस पुराण को सुनता अथवा सुनाता है, वह ब्रह्मलोक में जाता है। जो
कोई व्यक्ति आश्विन पूर्णिमा के दिन सात धेनुओंयानि गाय के साथ यह पुराण ब्राह्मण
को दान करता है वह निश्चय ही मोक्ष व स्वर्ग प्राप्त करता है।
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